देश भर स्थानीय तह के निर्वाचन के लिए मौन अवधि शुरु हो चुका है । परन्तु नेपाल के राजनीतिक और प्रशासनिक मानचित्र में शामिल किया गया क्षेत्र लिपुलेक, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों में स्थानीय निर्वाचन करने के लिए कीसी भी प्रकार की तयार नही की गई है । नेपाल के ईस भूमि में भारत-चीन युद्ध के समय में तैनात भारतीय सैन्य बेश अभी भी है और भारत भी उन जगहों पर अपना दावा करता है । नक्शे में औपचारिक रुप सें संलग्न कराने बाद पहली बार स्थानीय तह के निर्वाचन हो रहे हैं । नेपाल ने कालापानी, लिपुलेक और लिंपियाधुरा सहित नए नक्शे जारी करने के बाद भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी ।
निर्वाचन आयोग ने इस इलाके में रहने वाले लोगों के नाम वोटर लिस्ट में समावेश न होने की बात बताई है । आयोग के प्रवक्ता शालिग्राम शर्मा पौडेल ने कालापानी, लिपुलेक और लिंपियाधुरा के लोग अगर नागरिकता के साथ मतदाता सूची में पंजीकृत हैं, तो वे उन निर्वाचन क्षेत्रों में भी चुनाव कराएंगे । उन्होंने बताया, "चुनाव के लिए वोटर लिस्ट की ज़रूरत होती है ।
क्या कहता है गृह मन्त्रालय
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता फणींद्र मणि पोखरेल भी कालापानी सहित के क्षेत्र मे निर्वाचन होने के बारे में अनभिज्ञ रहेको बताते हैं । उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वहां के लोगों के नाम मतदाता सूची में थे या नहीं। मुझे नहीं पता कि मतदान केंद्र कहां है या नहीं । चुनाव आयोग द्वारा सर्वेक्षण और प्रबंधन वाली जगह पर कर्मचारी पहुंच गए हैं।"
नेपाल द्वारा अपने नक्शे में जोड़े गए कालापानी, लिपुलेक और लिंपियाधुरा क्षेत्र दार्चुला जिले के ब्यास गाउँपालिका में पडता है । दार्चुला के प्रमुख जिला अधिकारी दीर्घराज उपाध्याय ने स्थानीय तह के चुनाव आसपास के गांवों में से केवल तिन्कर और छांगरू में ही होने की बात बताइ । ये गांव करीब कालापानी से १२ किलोमीटर दूर हैं। बताया जा रहा है कि इन गांवों के लिए दो अलग-अलग मतदान केंद्र होंगे जहां करीब ७०० मतदाता हैं । उपाध्याय ने कहा, "चुनाव सामग्री, कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी सोमवार को ही हेलीकॉप्टर से वहां भेजे गए। चुनाव नहीं होगा क्योंकि उसी वार्ड में कहीं और मतदाता नहीं हैं।"
सरकार द्वारा जारी देश के नए नक्शे में गुंजी कुटी और नाभी भी भले ही नेपाल के अंतर्गत आते हैं, लेकिन वहां के लोगों की नेपाल तक पहुंच आसान नहीं है । "वहां के लोगों के पास भारतीय पहचान पत्र हैं । वे समान सेवा सुविधाओं का उपयोग करते हैं । पहले, टिंकर और छंगारू गांव भी नेपाल के पुराने नक्शे में शामिल हैं। लेकिन उन गांवों के लोगों को भी भारत के माध्यम से जिला मुख्यालय जाना पड़ता है," उन्होंने कहा।
व्यास के पहाड़ी और दुर्गम स्थानों में नेपाल के लिए कोई सड़क नहीं है । कहा जाता है कि चलने का संभव रास्ता भी मुश्किल है। जिससे एक ही गांव के एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक पहुंचने में तीन दिन लग जाते हैं.
उपाध्याय ने कहा कि हालांकि नेपाली सेना ने खलंगा से तिन्कर तक सड़क निर्माण का काम शुरू कर दिया है, लेकिन इसे पूरा करने में कुछ और साल लगेंगे। इसलिए चुनाव सामग्री हेलीकॉप्टर से भेजी गई।
उन्होंने कहा कि चुनाव संभव नहीं था क्योंकि गुंजी, कुटी और नाभी में जनगणना नहीं हुई थी और वहां के लोगों के पास नेपाली नागरिकता भी नहीं थी । "अगर मतदाता नहीं हैं, तो चुनाव केंद्र में होगा," उन्होंने कहा ।
केंद्रीय तथ्याङ्क विभाग के उप-महार्निदेशक हेमराज रेग्मी के अनुसार, जनगणना विवादित भूमि के आसपास की बस्तियों में की गई थी और प्रारंभिक आबादी में स्थानीय लोग शामिल थे । उन्होंने कहा,"विश्लेषण किया जा रहा है। बाद में क्षेत्र में कुल लोगों की संख्या ५०० होने का अनुमान है। यह संख्या ब्यास गांवपालिका वार्ड नंबर १ की आबादी में शामिल है।"
स्थानीय गाउँपालिका क्या कहता है?
गाउँपालिका के सूचना अधिकारी शिवराज बडू ने बताया कि नेपाली सुरक्षाकर्मी छांगरू मे डेरा डाले हैं । जबकि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा में भारतीय सुरक्षा बल तैनात हैं ।
"हमें अपने गाँव के कार्यालय तक पहुँचने के लिए भारत की अनुमति से उनके गाँव से गुजरना पड़ता है। इसलिए जनगणना या चुनाव की कोई संभावना नहीं है। दो बस्तियों के ग्रामीण जहाँ चुनाव होंगे, वे भी भारत की अनुमति से भारत गए थे," बडु ने समझाया । "हमारे लिए वहां जाना संभव नहीं है ।"
त्यहाँ के लोग गांव में केवल छह महीने ही टिंकर और छंगरू रहते हैं।
उच्च हिमपात और सर्दी से बचने के लिए, वे कार्तिक के अंत में मवेशियों के साथ घाटी में चले जाते हैं। फिर वे चैत के बीच में गांव लौट जाते हैं। वर्तमान में उन गांवों में आलू, बाजरा और ज्वार सहित फसल बोने का कोई मौसम भी नहीं है । ये ऐसी जगहें हैं जहां आम लोगों का आना-जाना बहुत मुश्किल है। इसलिए पूरे देश में निर्वाचनका प्रचार प्रसार जोड से चल रहा है, लेकिन इन गावों में ऐसा नहीं लगता कि निर्वाचन आया है।
कालापानी में सीमा विवाद क्यों?
२२ जून, २००८ को नेपाल की मंत्रिपरिषद ने कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेक के साथ नेपाल का आधिकारिक नक्शा जारी किया था । कुछ साल पहले भारत नें भी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद लिंपियाधुरा-कालापानी को अपने नए नक्शे में शामिल किया था । उस वक्त नेपाल के परराष्ट्र मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि नेपाल सरकार स्पष्ट है कि कालापानी क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है।
हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि उसके नए नक्शे ने नेपाल के साथ सीमा को नहीं बदला । नेपाल दावा करता रहा है कि १८१६ की सुगौली संधि के आधार पर महाकाली नदी के पूर्वी हिस्से में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेक सहित सभी क्षेत्र नेपाल के क्षेत्र का हिस्सा हैं।
परराष्ट्र मंत्रालय ने भारत के नए नक्शे के संबंध में भारत सरकार को एक 'राजनयिक नोट' भेजा था जिसमें कहा गया था कि सुगौली संधि के अनुसार, लिम्बियाधुरा के पूर्व में काली (महाकाली नदी), कालापानी और लिपुलेक नेपाल की भूमि थी ।
लेकिन भारत ने उस क्षेत्र में पहुँचने के लिए सड़क भी बना लिया है । (बीबीसी नेपाली सेवा के सहयोग में)